Class 12 Political Science Chapter 1 Notes in Hindi
दो ध्रुवीयता का अंत(The End of Bipolarity)

यहाँ हम कक्षा 12 राजनीतिक विज्ञान के पहले अध्याय “दो ध्रुवीयता का अंत” के नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं। इस अध्याय में सोवियत संघ से जुड़ी प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन किया गया है।

ये नोट्स उन छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे जो इस वर्ष बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। सरल और व्यवस्थित भाषा में तैयार की गई यह सामग्री अध्याय को तेजी से दोहराने और मुख्य बिंदुओं को याद रखने में मदद करेगी।

Class 12 Political Science Chapter 2 दो ध्रुवीयता का अंत Notes

सोवियत प्रणाली

रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य (U.S.S.R) का निर्माण हुआ । जिसका उद्देश्य एक समतामूलक समाज की स्थापना करना था, जिसमें पूंजीवादी व निजी संपत्ति का अंत करके समानता पर आधारित समाज की रचना करना था। इसी व्यवस्था को सोवियत प्रणाली कहा गया।

सोवियत प्रणाली की विशेषताएँ

(i) संपति पर राज्य का स्वामित्व:- निजी संपति की संस्था को समाप्त कर उसे पूर्ण राज्य के अधिकार क्षेत्र में रखा गया भूमि व उत्पादन पर राज्य का नियंत्रण हो गया।

(ii) वितरण प्रणाली – वितरण व्यवस्था भी सरकार के हाथों में थी जहाँ नागरिकों को बुनियादी जरूरत की चीजें जैसे स्वास्थ्य -सुविधा, शिक्षा तथा लोक कल्याण की चीजे भी समानता के सिद्धांत के आधार पर ही(iii

(iii) राज्य व पार्टी की संस्था को प्राथमिकता :-सोवियत प्रणाली के निर्माताओं ने राज्य और ‘पार्टी की संस्था, को प्राथमिकता व महत्व दिया। सोवियत अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध राज्य के नियंत्रण में थी।

(iv) अर्थव्यवस्था व संसाधन :- सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था विश्व की तुलना में कही ज्यादा उन्नत थी। विशाल ऊर्जा संसाधन खनिज तेल, लोहा-इस्पात आदि थे।

(v)सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी।

सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारण

  1. नागरिकों की आकांक्षाओं का पूरा ना हो पाना।
  2. सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा।
  3. साम्यवादी पार्टी का राजनीति पर अंकुश ।
  4. संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियार की संख्या को बढ़ाने में करना।
  5. प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के देशों की तुलना में पीछे होना।
  6. रूस का वर्चस्वशाली होना।
  7. गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
  8. अर्थव्यवस्था का गतिरूद्ध होना और उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
  9. राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा का उभार।
  10. सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना।
  11. साम्यवादी पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम

  1. शीत युद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया।
  2. एक ध्रुवीय विश्व अर्थात अमेरिकी वर्चस्व का उदय।
  3. हथियारों की होड़ की समाप्ति ।
  4. सोवियत गुट का अंत और 15 नए देशों का उदय।
  5. रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
  6. विश्व राजनीति में शक्ति संबंधों में परिवर्तन।
  7. समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह लग गया।
  8. पूंजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व ।

शॉक थेरेपी

शॉक थेरेपी का शाब्दिक अर्थ है आघात पहुंचा कर उपचार करना। साम्यवाद के पतन के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूंजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूंजीवादी की ओर संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया जिसे शॉक थेरेपी कहा गया। यह मॉडल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक द्वारा निर्देशित था।

शॉक थेरेपी की विशेषताएं

  1. मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व ।
  2. राज्य की संपदा का निजीकरण।
  3. सामूहिक फार्म की जगह निजी फार्म।
  4. मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
  5. मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
  6. पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
  7. पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।

शॉक थेरेपी के परिणाम

  1. रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया।
  2. आर्थिक परिणाम अनुकूल नही रहे।
  3. रूसी मुद्रा रूबल में भारी गिरावट।
  4. समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था का अंत।
  5. विश्व की सबसे बड़ी गराज सेल। (90% उद्योगों को निजी हाथों में औने-पौने दामों में बेचा गया।)
  6. आर्थिक विषमता में वृद्धि।
  7. खाद्यान्नों का संकट।
  8. माफिया वर्ग का उदय।
  9. लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण ना होने के कारण कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां जिससे सत्तावादी राष्ट्रवादी राष्ट्रपति शासन का उदय ।

संघर्ष और तनाव के क्षेत्र

पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र बने रहे और इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलअंदाजी भी बढ़ी। रूस के दो गणराज्य चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आंदोलन चले। पूर्वी यूरोप में चेकोस्लोवाकिया दो भागों चेक और स्लोवाकिया में बंट गया।

बाल्कन क्षेत्र

बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृह-युद्ध के कारण कई प्रांतों में बंट गया जिसमें शामिल वोस्त्रिया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।

बाल्टिक क्षेत्र

बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बने और वर्ष 2004 में नाटो में शामिल हुए।

मध्य एशिया

  1. मध्य एशिया के देश ताजिकिस्तान में 10 वर्षों तक अर्थात 2001 तक गृह युद्ध चलता रहा। अजरबैजान, आर्मेनिया, यूक्रेन, किर्गिस्तान और जॉर्जिया में भी गृह-युद्ध की स्थिति है।
  2. मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार हैं। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।

रूस और अन्य पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध

  1. पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ हैं।
  2. रूस और भारत दोनों का सपना बहुध्रुवीय विश्व का है।
  3. दोनों ही देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय संप्रभुता, स्वतंत्र विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्र संघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं।
  4. वर्ष 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।
  5. भारत रूसी हथियारों का एक बड़ा खरीददार है।
  6. रूस से तेल का आयात किया जाता है।
  7. परमाणविक योजना और अंतरिक्ष योजना में रूस की मदद मिलती है।
  8. कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ ऊर्जा आयात को बढ़ाने के प्रयास हुए हैं।
  9. उज़्बेकिस्तान में भारतीय कलाकारों को विशेषतः पसंद किया जाता है।

बर्लिन दीवार के गिरने को द्विध्रुवीय विश्व के पतन का द्योतक क्यों माना जाता है?

द्वि-ध्रुवीयता के दौर में जर्मनी का दो भागों में विभाजन हो गया। पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ के वार्सा गुट में और पश्चिमी जर्मनी संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के नाटो गुट में शामिल था। 1989 में बर्लिन की दीवार का गिरना सबसे पहली घटना थी जब दो गुटों में विभाजित एक देश पुनः एकीकरण की डोर में बंधा। सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व में संयुक्त राज्य अमेरिका एकल सुपर पावर (Single Super Power) रह गया।

मिखाईल गोर्बाचेव व उनकी सुधार नीतियां एवं उनके प्रभाव

  1. मिखाईल गोर्बाचेव एक रूसी और सोवियत राजनेता थे जिन्होंने सोवियत संघ के अंतिम नेता के रूप में कार्य किया। वैचारिक रूप से, गोर्बाचेव ने शुरू में मार्क्सवाद-लेनिनवाद का पालन किया, लेकिन 1990 के दशक की शुरुआत में सामाजिक लोकतंत्र की ओर बढ़ गए।
  2. गोर्बाचेव को 1980 में महासचिव बनाया गया। गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के कानून में सुधार करने की कोशिश करी। इसी बीच जनता समाजवाद का विरोध कर रही थी। विश्व में साम्यवादी सरकारों की आलोचना हो रही थी। जनता ने काम करना छोड़ दिया जिससे उत्पादन में कमी होने लगी जिसके कारण वस्तुओं की पूर्ति में कमी हो गई। इस समय महंगाई अपनी चरम सीमा पर थी। लोग अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे। इसीलिए गोर्बाचेव सोवियत व्यवस्था में सुधार करना चाहते थे।

गोर्बाचेव की सुधार नीति सोवियत संघ को मजबूत करने के लिए थी।
जो कि वह नीति निम्नलिखित प्रकार की है:-

(1)पेरेस्त्रोइका(पुनर्संरचना)

  1. राजनीतिक सुधार करना चाहते थे।
  2. वारसा पैक्ट से अलग होने का अधिकार।
  3. सभी देशों को अपनी आवश्यकता अनुसार विदेश नीति बनाने का अधिकार।
  4. संघ से अलग होने का अधिकार।

(2)ग्लास्नोस्त (खुलापन)

(i)प्रेस को राज्य के नियंत्रण से बाहर किया गया।
(ⅱ) राजनीतिक दल बनाने की आजादी दी गई।
(iii) लोगों को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया।
(iv)अर्थव्यवस्था के ऊपर से राज्य का नियंत्रण थोड़ा कम किया गया।

उपरोक्त लिखित नीतियों के कुछ प्रभाव भी देखने को मिले जो कि इस प्रकार है:-

  1. यूरोप में साम्यवाद धीरे-धीरे कमजोर हो गया।
  2. 1991 में सोवियत संघ का पूर्ण विघटन हो गया।
  3. साम्यवादी देशों में धीरे-धीरे लोकतंत्र मजबूत हुआ।
  4. समाजवादी विचारधारा में समानता के अधिकार के अलावा अन्य मौलिक अधिकारों को भी महत्व दिया जाने लगा।
  5. साम्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था में पूंजीवादी विचारों का प्रभाव दिखाई देने लगा।

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