ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता)
Class 12 History Chapter 1 Notes in Hindi
यहाँ हम कक्षा 12 इतिहास के पहले अध्याय “ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ” के नोट्स उपलब्ध करा रहे हैं। इस अध्याय में हड़प्पा सभ्यता से जुड़ी प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन किया गया है।
ये नोट्स उन छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे जो इस वर्ष बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। सरल और व्यवस्थित भाषा में तैयार की गई यह सामग्री अध्याय को तेजी से दोहराने और मुख्य बिंदुओं को याद रखने में मदद करेगी।
ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ Class 12 History Chapter 1 Notes in Hindi
हड़प्पा सभ्यता
- हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है।
- इसका काल 2600 ई० पू० से 1900 ई० पू० के बीच निर्धारित किया गया है।
- इसकी सर्वप्रथम खोज 1921 ई० में दयाराम साहनी ने की।
जॉन मार्शल एवं उनकी मुख्य उपलब्धियाँ
- जॉन मार्शल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल थे।
- इनके कार्यकाल में भारतीय पुरातत्व में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
- वे भारत में काम करने वाले पहले पेशेवर पुरातत्वविद् थे।
- वे आकर्षक वस्तुओं की खोज के साथ-साथ दैनिक जीवन की पद्धतियों की खोज में भी रुचि लेते थे।
- उन्होंने टीलों का उत्खनन किया।इन्होने पूरे विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में हड़प्पा सभ्यता की खोज की घोषणा की।
- इसके अतिरिक्त प्राप्त अवशेषों एवं पुरावस्तुओं को वर्गीकृत भी किया।
जल निकास प्रणाली
- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषता उनकी नियोजित जल निकास प्रणाली थी।
- सड़कों और गलियों को ग्रिड पद्धति से बनाया गया था और यह एक दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों/ सड़कों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल में आवासों का निर्माण किया गया था।
- आवासों को गली की नालियों से जोड़ा गया था।
- घरों की नालियां पहले एक हौदी या मलकुंड में खाली होती थी और गंदा पानी गली की नालियों में बह जाता था।
हड़प्पा लिपि
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है अतः इसे रहस्यमयी लिपि के नाम से जाना जाता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के अधिकाश अभिलेख संक्षिप्त हैं तथा सबसे लंबे अभिलेख में लगभग 26 चिन्ह हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि में कोई निश्चित वर्णमाला नहीं थी, इसमें चिन्हों की संख्या लगभग 375 से 400 के मध्य है।
- यह लिपि दाएं से बांये लिखी जाती थी।
हड़प्पा संस्कृति का ज्ञान हमें किन स्रोतों से होता है?
हड़प्पा संस्कृति की जानकारी के अनेक स्रोत है-
(i) विभिन्न स्थलों की खुदाई से प्राप्त सड़कों, गलियों, भवनों, स्नानागारों आदि के द्वारा नगर योजना, वास्तुकला और लोगों के रहन-सहन के विषय में जानकारी मिलती है।
(ii) कला शिल्प की वस्तुएँ जैसे-तकलियाँ, मिट्टी के खिलौने, धातु की मूर्तियाँ, आभूषण, मृद्भाण्ड आदि से विभिन्न व्यवसायों एवं सामाजिक दशा के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
(iii) मिट्टी की मुहरों से धर्म, लिपि आदि का ज्ञान होता है।
हड़प्पाई लोगों के निर्वाह के तरीके
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के निर्वाह के मुख्य तरीके निम्नलिखित थे-
(i) लोग कई प्रकार के पेड़-पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे। मछली उनका मुख्य आहार था।
(iii) उनके अनाजों में गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना तथा तिल शामिल थे। इन अनाजों के दाने कई हड़प्पा स्थलों से मिले हैं।
(iii) लोग बाजरा तथा चावल भी खाते थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से मिले हैं। चावल का प्रयोग संभवतः कम किया जाता था क्योंकि चावल के दाने अपेक्षाकृत कम मिले हैं।
(iv) वे जिन जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे. इनमें भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर शामिल थे। ये सभी जानवर पालतू थे।
(v) हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। इससे अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा निवासी इनका मांस खाते थे। परंतु यह पता नहीं चल पाया है कि इन जानवरों का शिकार वे स्वयं करते थे अथवा इनका माँस अन्य शिकारी समुदायों से प्राप्त करते थे। वे कुछ पक्षियों का माँस भी खाते थे।
हड़प्पा निवासियों की आर्थिक गतिविधि
(i) कृषि-हड़प्पावासियों की आर्थिक गतिविधियों में कृषि करना तथा मछलीपातून शामिल हैं।
(ii) पशुपालन- गाय, भैंस, बैल आदि को पालना तथा बैलों का उपयोग खेत जोतने में किया जाता था।
(ii) कुटीर का उपयोग- खुदाई के दौरान मिली मूर्तियों से यह पता चलता हैं की मूर्तियों तथा मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी करते थे।
(iv) व्यापार- वे आभूषण तथा मनकों का निर्माण भी करते थे।
(v) माप-तौल, बाट व्यापार में तोलने के लिए बाटो का प्रयोग किया जाता था। 2,4,6. के माप होते थे।
सामाजिक विभिन्नता
हड़प्पा समाज में भिन्नता की जानकारी हमें शवाधान एवं विलासिता की वस्तूओं से मिलती है
शवाधान
- यहां पर अंतिम संस्कार व्यक्ति को दफनाकर किया जाता था पाई गई कब्रों की बनावट एक दूसरे से अलग अलग है कई कब्रों में ईंटों की चिनाई की गई है जबकि कई कब्रे सामान्य है
- कब्रों में व्यक्तियों के साथ मिट्टी के बर्तन और आभूषण भी दफना दिए जाते थे क्योंकि शायद हड़प्पा के लोग पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे
- कब्रों में से तांबे के दर्पण मनके और आभूषण आदि भी मिले हैं
विलासिता की वस्तुएं
- • सामाजिक भिन्नता को पहचानने का एक और तरीका होता है विलासिता की वस्तुएं
- मुख्य रूप से दो प्रकार की वस्तुएं होती हैं
- रोजमर्रा प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं जैसे की चकिया, मिट्टी के बर्तन, सुई, सामान्य औजार आदि
- इन्हें पत्थर या मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से बनाया जाता था और यह आसानी से उपलब्ध थी
- विलासिता की वस्तुएं यह वह वस्तु है जो आसानी से उपलब्ध नहीं थी अर्थात कम मात्रा में मिली है
- ऐसी वस्तु है जो महंगी या दुर्लभ हो उन्हें कीमती माना जाता है जैसे कि फ़यांस के पात्र, स्वर्णाभूषण
- हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल लोथल (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), नागेश्वर (गुजरात), धोलावीरा (गुजरात)
बाट प्रणाली
- सिंधु घाटी सभ्यता के बाट एक सूक्ष्म या परिशुद्ध प्रणाली द्वारा नियंत्रित थे।
- यह बाट चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे।
- सामान्यतः यह किसी भी प्रकार के निशान से रहित और घनाकार होते थे।
- इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (1,2,4,8,16,32 इत्यादि 12800 तक) थे, जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली के अनुसार थे।
मनके
- मनको को कार्नेलियन लाल रंग का सुंदर पत्थर जैस्पर सेलखड़ी स्फटिक आदि से बनाया जाता था
- धातु – सोना, तांबा, कांसा, शंख फ्रांस पक्की मिट्टी, कुछ मनको को दो या दो से अधिक पदार्थों को आपस में मिलाकर भी बनाया जाता था
- मनको का आकार छपराकार, गोलाकार, डोलाकार आदि होता था
- ऊपर से चित्रकारी द्वारा सजावट की जाती थी
- पत्थर के प्रकार के अनुसार मनके बनाने की विधि में परिवर्तन आता था
- सेल खेड़ी एक मुलायम पत्थर था जिसे आसानी से उपयोग में लाया जाता था कई जगह पर सेल खेड़ी के चूर्ण को सांचे में डालकर भी मनके बनाए गए हैं
- मनके बनाने के लिए घिसाई पॉलिश और छेद करने की प्रक्रियाएं होती थी
मोहर और मुंद्राकन
- मोहर और मुद्रा अंकन का प्रयोग भेजी गई वस्तुओं की सुरक्षा के लिए किया जाता
- उदाहरण के लिए अगर कोई सामान एक थैले में डालकर कहीं दूर भेजा गया तो उसके मुंह को रस्सी से बांध दिया जाता था और उस रस्सी पर गीली मिट्टी लगाकर उस पर मोहर की छाप लगाई जाती थी
- अगर उस मोहर की छाप में कोई परिवर्तन आए तो यह सामान के साथ छेड़छाड़ को दर्शाता था
- साथ ही साथी से भेजे जाने वाले की पहचान का पता भी चलता था
शिल्पकला
- शिल्पकला के अंदर आभूषण, मूर्तियां, औजार बनाना आदि को शामिल किया जाता है
- हड़प्पा में मुख्य रूप से मनके, मुहर, बाट बनाए जाते थे, शंख की कटाई की जाती थी और धातु कार्य किए जाते थे
- हड़प्पा सभ्यता का मुख्य शिल्प उत्पादन केंद्र चन्हुदड़ो, लोथल, और
- धौलावीरा में छेद करने का सामान मिला हैं
मोहनजोदड़ो
- हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास था।
- हड़प्पा सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल मोहनजोदड़ो में बस्ती दो भागों में विभाजित थी दुर्ग और निचला शहर।
दुर्ग
- दुर्ग की ऊंचाई का कारण यह था कि यहां की संरचना कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनी थी।
- दुर्ग को दीवार से घेरकर निचले शहर से अलग किया गया था।
निचला शहर
- निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था।
- एक बार चबूतरों के यथास्थान बनने के बाद शहर का सारा भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था।
- इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार क्रियान्वयन ।
मोहनजोदडो में दुर्ग भाग की प्रमुख इमारते माल गोदाम एवं विशाल स्नानागार मानी जाती हैं।
माल गोदाम
माल गोदाम एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं जबकि ऊपरी हिस्से जो संभवतः लकड़ी से बने थे, बहुत पहले ही नष्ट हो गए।
विशाल स्नानागार
- विशाल स्नानागार विशाल आंगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है।
- जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी और दक्षिणी भाग में सीढ़ियां बनी हुई थी।
- जलाशय के किनारों पर ईंटों को जमा कर तथा जिप्सम के गारे के प्रयोग से इसे जलबद्ध किया गया था।
- इसके तीनों ओर कक्ष बने थे जिनमें से एक बड़ा कुआं था। एक गलियारे के दोनों ओर चार-चार स्नानागार बने थे।
संभवतः इस स्नानागार का प्रयोग किसी विशेष अनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता का अंत
(i) सिंधु नदी के मार्ग बदलने और जलवायु परिवर्तन से संभवतः हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई।
(ii) सिंधु नदी की बाढ़।
(iii) नदियों के सूख जाने के कारण रेगिस्तान का प्रसार।
(iv) वनों की कटाई के कारण भूमि में नमी की कमी से रेगिस्तान का प्रसार।
(v) सुदृढ़ एकीकरण के अभाव में समवतः हड़प्पाई राज्य का अंत हो गया।
कनिंघम
(i) कनिंघम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल थे। उन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक उत्खनन आरंभ किए।
(ii) हड़प्पा सभ्यता की आरंभिक बस्तियों की पहचान के लिए उन्होंने चौथी से सातवीं शताब्दी ईसवी के बीच उपमहाद्वीप में आए चीनी बौद्ध तीर्थयात्रियों द्वारा छोड़े गए वृत्तांतों का प्रयोग किया।
कनिंघम का भ्रम
(i) कनिंघम की रुचि उठी ईसा पूर्व से चौथी ईसा पूर्व के बीच की थी। यह भी एक कारण था की वे हड़प्पा के महत्त्व को समझने में चूक गए।
(ii) हड़प्पाई वस्तुए 19वी शताब्दी में कभी कभी मिलती थी। तथा कुछ कनिंघम तक भी पहुँची लेकिन वह यह नहीं समझ सके की वे पुरावस्तुएं कितनी प्राचीन थी।
(iii) एक अग्रेज ने कनिंघम को एक हड़प्पाई मुहर दी। उन्होने मुहर पर ध्यान तो दिया पर उन्होनें उसे एक ऐसे काल खण्ड में, दिनांकित करने का असफल प्रयास किया जिससे वे परिचित थे।
(iv) उनका मानना था की भारतीय इतिहास का प्रारंभ गगा की घाटी में पनपे पहले शहरों के साथ हुआ। इन सभी कारणों से कनिधम हडप्पा के महत्व को समझने में असफल हो गए।
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